C.O. City instead of registering offenders under sections 307,325,323,504 and 506 of IPC culminated into section 151/107/116 of Cr.P.C.

 


Grievance Status for registration number : PMOPG/E/2022/0146453

Grievance Concerns To
Name Of Complainant
Lalit Mohan Kasera
Date of Receipt
31/05/2022
Received By Ministry/Department
Prime Ministers Office
Grievance Description
Registration Number DGPOF/R/2022/60352 Name Lalit Mohan Kasera Date of Filing 16/05/2022Status REQUEST TRANSFERRED TO OTHER PUBLIC AUTHORITY as on 17/05/2022
Details of Public Authority :- SUPERINTENDENT OF POLICE OFFICE MIRZAPUR.
vide registration number :- SPMZR/R/2022/80004 respectively.
Note:- Further details will be available on viewing the status of the above-mentioned new request registration number.
More feedback is attached herewith. श्री मान जी उपरोक्त जनसूचना आवेदन आंग्ल भाषा में है इसलिए उसका हिंदी अनुवाद दे रहा हूँ शिकायत संख्या:-40019922010610 माननीय क्षेत्राधिकारी महोदय के यहां लंबित है हमे उम्मीद है की आप लोगो को समझ में आएगा क्योकि प्रकरण मातृ भाषा में भी उपलब्ध है 
आवेदक का नाम-Lalit Mohan Kasera विषय-सभी जानते हैं कि सी आर पी.सी की धारा 151/107/116 के तहत कार्यवाही. केवल निवारक उपाय हैं और शुद्ध आपराधिक कार्यवाही नहीं हैं, बल्कि  ऐसी कार्यवाही अर्ध न्यायिक प्रकृति की हैं, जबकि मेरे बेटे का अपराध शुद्ध आपराधिक कार्यवाही को आमंत्रित कर रहा है, इसलिए मेरा मामला भारतीय दंड विधान की धारा 151/107/116 के तहत नहीं हल किया जा सकता है डी.जी.पी. कार्यालय उत्तर प्रदेश राज्य में पुलिस विभाग का निगरानी प्रमुख है जिसके माध्यम से राज्य सरकार राज्य में कानून व्यवस्था की निगरानी और पालन सुनिश्चित करती है। यह डीजीपी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि  लोगों के अधिकारों की रक्षा और देश  के कानून के प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने के लिए सदैव तत्पर रहे  पुलिस अधीक्षक कार्यालय मिर्जापुर में पीआईओ सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 7 की उपधारा 1 के तहत निर्धारित समय के भीतर मांगी गई बिंदुवार जानकारी प्रदान कर सकता है। 1-माननीय पुलिस अधीक्षक जिला-मिर्जापुर पीड़ित आवेदक को बता सकते हैं कि क्या 21 मार्च 2022 को भारतीय दंड संहिता की धारा 323/504 के तहत 31/22 के रूप में पंजीकृत एनसीआर को सीआरपीसी की धाराओं में कैसे समाप्त किया जा सकता है। धारा 151/107/116 जो अपराध निवारक उपाय हैं? इसका तात्पर्य यह है कि संबंधित पुलिस और सर्कल अधिकारी का निष्कर्ष और अवलोकन स्वयं अनुचित है और देश  के कानून के विपरीत सक्षम वरिष्ठ रैंक अधिकारी द्वारा ठीक किया जाना चाहिए। कृपया उसी दिन पीड़ित के हजरत इमाम युसूफ संभागीय अस्पताल में किए गए एक्स-रे रिपोर्ट की एक प्रति उपलब्ध कराएं। 2-सीआरपीसी की  धारा 151  पुलिस की शक्ति है जो पुलिस द्वारा अपराध  निवारक कार्रवाई पर विचार करने वाला एक प्रावधान है। उक्त प्रावधान के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा अपराध करने से पहले ही उस अपराध को रोकने के लिए  पुलिस अधिकारी द्वारा लागू किया जा सकता है। 151. संज्ञेय अपराध करने से रोकने के लिए गिरफ्तारी। (1) किसी भी संज्ञेय अपराध को करने के लिए एक डिजाइन बनाने  वाले को  एक पुलिस अधिकारी, मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के बिना, इस तरह के डिजाइन करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है, अगर यदि  अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है कि अपराध के कमीशन को अन्यथा रोका नहीं जा सकता है तो इस प्रावधान का प्रयोग किया जाता है । सीआर, पी.सी. की धारा 107/116 तब लागू किया जाता है जब शांति भंग की आशंका होती है, परिणामस्वरूप ये दो धाराएं भी निवारक उपाय हैं जो उपरोक्त पुलिस की अक्षमता और भ्र्ष्टाचार को दर्शाती हैं। कृपया सरकार द्वारा जारी परिपत्र, अधिसूचना, कार्यालय ज्ञापन प्रदान करें जो एन.सी.आर की परिणति अपराध निवारक प्रावधान में करने का समर्थन करता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 323/504 के तहत और मुक़दमा संख्या  31/22 के रूप में पंजीकृत  अपराध को Cr.P.C की धाराओं के तहत 151/107/116 में परिणित करना जो अपराध निवारक उपाय हैं किस तरह से न्यायोचित है । 3-क्या पीड़ित की मेडिकल जांच रिपोर्ट पुलिस की जांच के अधीन है, निस्संदेह नहीं, अपराधियों द्वारा पीड़ित को गंभीर चोटें कैसे पहुंचाई जा सकती हैं. क्या पुलिस की विश्वसनीयता पर कोई संदेह नहीं है क्योंकि इसमें पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है। पुलिस कोई न्यायाधीश नहीं है जो अपराधियों को मुक्त कर दे। क्या संबंधित पुलिस उस तारीख और समय का खुलासा करेगी जब अपराधियों को पुलिस ने शांति भंग की आशंका के मद्देनजर हिरासत में लिया था, जैसा कि रोमिल कसेरा पर सीआरपीसी 151 के तहत आरोपित किया गया था। और दो अन्य अपराधियों को संबंधित पुलिस से सहानुभूति क्यों प्राप्त हुई क्या यह भ्र्ष्टाचार नहीं है ? कृपया दो अन्य अपराधियों को पुलिस द्वारा मुक्त करने का कारण बताएं क्योंकि तर्क का अधिकार सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा है। 4-कृपया वह प्रावधान प्रदान करें जो पुलिस
Grievance Document
Current Status
Case closed
Date of Action
23/06/2022
Remarks
अधीनस्थ अधिकारी के स्तर पर निस्तारित महोदय जांच आख्या संलग्न कर सादर अवलोकनार्थ प्रेषित है आवेदक उपरोक्त की जांच आख्या संलग्न है
Reply Document
Rating
Poor
Rating Remarks
Police are adopting a lackadaisical approach in dealing with the matter which is only promoting offenders and corruption. 1-Aforementioned offenders caused fatal injuries to the applicant cum victim including serious head injuries in which heavy bleeding stopped after the surgery of the Government Doctor then X-Ray was carried out which result is still awaited. Applicant cum victim suffered fracture in left hand quite obvious from attached preliminary medical report and injuries in every part of body where swelling is still visible there even after five days of the fatal assault. 2-Still police did not register the First Information Report in the matter by culminating N.C.R. into F.I.R.. When the primary medical report is available to the police. 3-Instead of registering the N.C.R., POLICE concerned must register F.I.R. under section 307,325,323,504 and 506 of the Indian penal code and put the aforementioned offender behind the bar as the offenders earlier have attacked oftenly.
Officer Concerns To
Officer Name
Shri Bhaskar Pandey (Joint Secretary)
Organisation name
Government of Uttar Pradesh
Contact Address
Chief Minister Secretariat , Room No. 321, U.P. Secretariat, Lucknow
Email Address
bhaskar.12214@gov.in
Contact Number
05222226350
Beerbhadra Singh

To write blogs and applications for the deprived sections who can not raise their voices to stop their human rights violations by corrupt bureaucrats and executives.

1 Comments

Whatever comments you make, it is your responsibility to use facts. You may not make unwanted imputations against any body which may be baseless otherwise commentator itself will be responsible for the derogatory remarks made against any body proved to be false at any appropriate forum.

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 323/504 के तहत और मुक़दमा संख्या 31/22 के रूप में पंजीकृत अपराध को Cr.P.C की धाराओं के तहत 151/107/116 में परिणित करना जो अपराध निवारक उपाय हैं किस तरह से न्यायोचित है । क्या पीड़ित की मेडिकल जांच रिपोर्ट पुलिस की जांच के अधीन है, निस्संदेह नहीं, अपराधियों द्वारा पीड़ित को गंभीर चोटें कैसे पहुंचाई जा सकती हैं. क्या पुलिस की विश्वसनीयता पर कोई संदेह नहीं है क्योंकि इसमें पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है। पुलिस कोई न्यायाधीश नहीं है जो अपराधियों को मुक्त कर दे

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